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बेटी को पालने के लिए स्कूटी पर राजमा-चावल बेचती है ये मां, भूखों को खिलाती है मुफ्त खाना कोई भी इंसान पैसे से अमीर नहीं होता, बल्कि उसका बड़पन लोगों की नज़र में बड़ा बना देता है। अमीरी और गरीबी हमेशा लोगों की सोच पर निर्भर करता है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि आज भी हमारे देश में कुछ ऐसे लोग मौजूद हैं जिनके अंदर इंसानियत अभी भी बची हुई है। एक ऐसी ही शख्सियत हैं दिल्ली की सरिता कश्यप जो गरीब बच्चों को मुफ्त में भोजन करवाती हैं। दिल्ली की रहने वाली सरिता कश्यप का जीवन बहुत ही संघर्ष से भरा रहा, सरिता एक ऑमोबाइल कंपनी में नौकरी करती थी लेकिन शादी टूटने के बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई। क्योंकि उन्हें खुद को ही नहीं अपनी बच्ची को पालना और पैसे कमाने थे। ऐसे में उन्होंने अपना घर खर्च चलाने के लिए स्कूटी पर राजमा चावल बेचना शुरू कर दिया। सरिता लगभग पिछले 20 साल से सिंगल मदर हैं और वो पढ़ी लिखी हैं फर्राटेदार अंग्रेजी भी बोलती हैं।उन्होंने काफी कंपनियों में काम भी किया है, लेकिन अपनी बेटी की देखभाल के लिए उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी थी। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर सरिता की एक तस्वीर वायरल होने लगी थी, जिसे आईएएस अवानिश ने साझा किया था। इस तस्वीर को शेयर करते हुए उन्होंने लिखा था कि - ये हैं पश्चिम विहार दिल्ली की सरिता कश्यप जो पिछले 20 साल से अपनी स्कूटी पर ‘राजमा-चावल’ का स्टाल लगाती हैं। अगर आपके पास पैसे नहीं हैं, तो भी आपको ये भूखा नहीं जाने देंगी। खाली समय मे बच्चों को पढ़ाती भी हैं।’ अगर किसी के पास पैसे नहीं भी होते हैं तो सरिता उसे मुफ्त में राजमा - चावल खिला देती है। इसके अलावा वो गरीब बच्चों को पढाती भी हैं, उनका मानना है कि कमाई तो होती रहेगी,लेकिन लोगों को खाना खिलाने में जो खुशी मिलती है वो और कहीं नहीं मिलती। सरिता ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि - एक दिन वो राजमा -चावल बनाकर स्कूटी पर लादे और पीरागढ़ी बेचने चली गईं। पहले उन्होंने सोचा कोई खाएगा तो ठीक है वरना वापस लौट आएंगी। लेकिन उनकी किस्मत अच्छी थी और पहले ही दिन उन्हें अच्छा रिस्पॉन्स मिल गया, लोगों ने बड़े ही चाव से उनके हाथ का बनाया हुआ खाना खाया। ऐसे करके धीरे - धीरे उनका बिज़नेस चल निकला, वो रोज़ाना पीरागढ़ी में मेट्रो स्टेशन के पास पेड़ के नीचे स्कूटर पर राजमा चावल बेचने लगी। सरिता अब अकेले ही अप
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स्ट्रेचर पर पड़ी हुई एक नवजवान की लाश और शोकाकुल परिजन। यह एक अपराधी है जिसका एनकाउंटर हुआ है । इसका अपराध था कि इसे 10 th में 95% से ज्यादा नंबर नहीं आए । भला ऐसे अपराध के बाद जीने का हक़ है? तो एनकाउंटर हो गया !! एनकाउंटर हमने और आपने मिलकर किया । हमने अपने बेटे बेटियों के 98% ,100% नंबरों के साथ फोटो छपवाए,लड्डू खिलाते,विक्टरी साइन बनाते,खिलखिलाते , ठहाके लगाते फोटो,पोस्ट ..... अखबारों ने टौपर के फोटो छापे, उनके इंटरव्यू छापे ,खैर ये तो उनका धंधा है मगर हमने कभी सोचा कि जिसे 60 65 % मार्क्स आए हैं उन्हें भी जीने का हक़ है!!! जो फेल भी हो जाएं उसे भी ज़िन्दा रहने का हक है मार डाला हमने भारतीय शिक्षा पद्धति नौकर पैदा कर रही है ....स्वरोजगार और जीवन खत्म कर रही है ..... अब भी समझ जाईये वर्ना आने वाली नस्ले तबाह हो जाएगी 😢😢😢
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